मजदूर
कौन कहेगा कौन सुनेगा
गाथा है ये मन की
काम करे जो
घर जोड़े जो
यही कड़ी जीवन की
एक चित्र जो
मन मे उभरे
ईंट ईंट सर पर
धर सम्भरे
सम्हल सम्हल
जो घर को बनाये
कहो वही क्या
मजदूर कहाये
पाई पाई को
जो जोड़े
सुख सपनो को
अपने तोड़े
दिवा रात्रि को
चैन न पाएं
कहो क्या
वो भी
मज़दूर कहाये
देखि सलोनी
सुंदर नारी
घर उपवन सा
सुंदर फुलवारी
मास दिवस
दिन रैन बिताए
वो काम करे तो
बोलो कौन कहाये
अब बात
समझ मे आई सारी
पैसों से ये बनी बीमारी
काज करे
और लक्ष्मी पाए
भैया वही
मज़दूर कहाये।।
© डॉ. ज्योत्स्ना गुप्ता
गोला गोकरननाथ
जनपद खीरी
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