हाइकु :- रावण मरण
सीता ने राम
से कहती हे प्रिय
सुनो ये बात
जनकपुर
में हुई मुलाक़ात
आपके साथ
उससे कुछ
बढ़ते रहा आश
वही रहूं मैं
जहां आप हो
सेवा में हम रहूं
आपके पास
मिला राम को
राज्य न वनवास
संग लक्ष्मण
और जानकी
साथ साथ चलते
गये जंगल
गुजरी काल
सीता देखी हिरण
मन ही मन
चाहिए रहा
प्रिय राम से कही
हिरण पीछे
भागते रहे
राम वन के धाम
घबरा गई
राम के सीता
फिर लक्ष्मण को भी
भेजी पीछे से
दे गये रेखा
वही लक्ष्मण रेखा
होती न पार
हुआ रहता
नहीं सीता हरण
ये रामायण
साधु वेश में
भिक्षा लेने आये जो
रावण मोह
रेखा पार की
सीता जी को ले गये
किये हरण
वापस आये
राम लक्ष्मण कुटी
रही न सीता
सीते हे सीते
कहां तू है वन में
न सुनी बोली
क्योंकि लंका में
सीता मुसीबत में
लगाये पता
गये श्रीलंका
वे दूत हनुमान
देखी माँ सीता
हे हनुमान
कहां राम लक्ष्मण
दे देना चूड़ी
हमें ले आया
लंका के रावण
बने वे साधु
तब राम ने
लक्ष्मण, हनुमान
बनाये वहीं
लंका जाने के
लिए आदम पुल
बनाये सब
विभिषण ने
लिया प्रभु राम के
पास शरण
तब ही युद्ध
हुआ रावण मरण
कहें रोशन
रोशन कुमार झा
सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज
कोलकाता भारत
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