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दोहा गजल (कवि श्लेष चन्द्राकर)


दोहा गजल 

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अर्थव्यवस्था में यहाँ, होता नहीं सुधार।
लोग सहेंगे कब तलक, महँगाई की मार।

पाश्चात्य की सोच का, देखो अब परिणाम,
मातु बहन अरु बेटियाँ, सहती अत्याचार।

हिन्दू मुस्लिम को लड़ा, खेलें गंदा खेल,
देश बाँटना चाहते, छुपे हुए गद्दार।

नियम कायदे तोड़कर, मचा रहे हुड़दंग,
भूल रहे हैं लोग क्यों, अनुशासित व्यवहार।

आज सत्य की राह पर, चलता जो भी श्लेष,
देते उसका साथ बस, लोग मात्र दो-चार।।
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श्लेष चन्द्राकर,
पता:- खैरा बाड़ा, गुड़रु पारा, वार्ड नं.- 27, 
महासमुन्द (छत्तीसगढ़) पिन - 493445,

1 comment:

  1. कलम लाइव में मेरी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार संपादक जी

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