ग़ज़ल
दरमियां बाक़ी अभी हैं खांइयाँ।
कह रही हैं चीख़ कर तन्हाइयाँ।
मुल्क की खातिर बहा कितना लहू,
सब भुला डाली गयीं क़ुर्बानियाँ।
उनको अपने हुस्न पर बेजा गुरूर,
हम भी हारे कब भला हैं बाज़ियाँ।
दूरियों से प्यार कम होता नहीं,
दूर दिल से कर सकीं कब दूरियाँ।
कल करोना काल में थीं जिस तरह,
अब नहीं बाक़ी हैं वैसी सख़्तियाँ।
उनकीआमदकीख़बरसुनकरहमीद,
छा गयीं हर एक पर मदहोशियाँ।
ग़ज़ल
जीवन का भरपूर मज़ा लो।
चेहरे पर मुस्कान सजा लो।
फेंक परे सब झगड़े झंझट,
दुश्मन को भी दोस्त बना लो।
दोस्त अगर हो रूठा कोई,
देर करो मत जल्द मना लो।
नफ़रत को मत पालो दिलमें,
मन में अपने प्यार बसा लो।
रिश्ते सब अनमोल जगत के,
करके कुछतुम त्यागबचा लो।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक, सेवानिवृत्त,
पंजाब नेशनल बैंक,
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