प्रकृति का न्याय
उजड़ते जंगल देखें, उखड़ते पर्वत देखें,
सूखती नदियां देखी,खाली समुद्र भी देखें।
रे इंसान! देख तेरे कर्म इसने उम्र तेरी नापी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।
जब जीव-जीव को मारते देखा जानें कैसे सोती होगी,
नम आंखे बादल बना, नदियां बना अश्रु बहाती होगी।
लुटती देख अस्मत अबला की कान्हा को पुकारी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।
क्या गुजरी होगी इस बेबस पर जब सीना तुमने खोदा है,
तुमको बिठाया सिर पर इसने,पैरों नीचे तुमने इसे रोंदा हैं।
करके संहार जिगर के टुकड़ों का देखना मां कैसे पापी होगी,
अब न्याय करेगी प्रकृति इसकी सजा क्या माफी होगी।
नाम- चेतन मीणा
पता- घाटा नैनवाडी, बोंली,स.मा.(राज.)
पिन- 322030
फोन-9875131374
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