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प्रेम दीवाना prem deewana

     प्रेम दीवाना

प्रेम दीवाने को सब अच्छा लगता है।
अग्नि मे जलना ही सच्चा लगता है।
दिन-रात तुफानो से लड़ता रहता है।
उसको तैरना कहा अच्छा लगता है।
सागर मे डूबना ही सच्चा लगता है।।

प्रेम दीवाना जग से अनजाना होता है।
ना कोई अपना ना कोई पराया होता है।
पल-पल जीता पल-पल मरता रहता है।
खुली आँखे वो सपनो मे हरदम रहता है।
प्रेम-नशे मे हरपल डूबा उरता रहता है।।

प्रेम दीवाना महफ़िल में अकेला रहता है।
अकेले में भी वो महफ़िल सजा लेता है।
दुनिया की नजर में वो पागल कहलाता है।
अपनी ही दुनिया में मग्न वो जीता है
उसके शिवा कोई नहीं उसका अपना हैं।।

                 कवि मस्तना

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