बनेंगे गवाह ये..
चाँद-तारे मुहब्बत के..हसीं हो जाएंगे फिर..
वो नजारे मुहब्बत के..
आसमां तलक फैलेंगे ये उजाले..
झिलमिलाने लगेंगे चिराग मुहब्बत के..
झील सी उन आँखों में...
झरते उन नयनकोरों में..
पढ़ता हूँ अक्सर इशारे मुहब्बत के..
चाँदनी रात में...
चाँदी से सरोवर किनारे..
गढ़ता हूँ अक्सर अफसाने मुहब्बत के..
वीणा की तान में...
प्रकृति के मधुर ताल में..
गुनगुनाता हूँ अक्सर तराने मुहब्बत के..
बनेगी गवाह ये...
सुरमयी साँझ भी...
हमारे दामन में..
खिलेगा चाँद भी..
खिल जाएगी कली-कली..
महक उठेगी गली-गली..
चहकने लगेंगे हर गलियारे मुहब्बत के..
स्वरचित :- मुकेश राठौड़
धन्यवाद सर
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