*गीत*
दलों ने बाँट दीं हमको दलों में
चुनावी दाँव में हम फिर फँसेंगे
मुँगेरीलाल के सपने दिखाकर
सँपोलों की तरह हमको डसेंगे
जो जनता से जुड़े बिलकुल नहीं वो
सियासत ख़ूब भारी कर रहे हैं
उठाते हीं नहीं मुद्दे ज़रूरी
सभी शेखी बघारी कर रहे हैं
नहीं लेते जो खाकर ख़ुद डकारें
वो ताने ख़ूब औरों पर कसेंगे
दलों ने बाँट दीं....
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अभी देंगे सभी अपनी दलीलें
कभी तो मुल्क़ की तस्वीर बदले
गरीबों को दिलासा फिर मिलेगा
मगर संभव नहीं तकदीर बदले
हमीं जिनको बनाएँगे मसीहा
वहीं फिर बाद में हम पर हँसेंगे
दलों ने बाँट दीं....
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कहीं बिजली की किल्लत है अभी भी
कोई भोजन पकाता है घड़े में
भले आ जाएँ सरकारें कोई भी
रहेगा देश उन्नत आँकड़े में
किसानों का रहा जो हाल ऐसा
किसी दिन भूख से हम सब मरेंगे
सत्येन्द्र गोविन्द
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