गाँव अपना
था प्यारा सा कभी गांव अपना,
वो पोखर नहर नदी का किनारा,
टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडी वाला रास्ता,
वो पीपल की छांव में हमजोली संग खेलना,
वो लहलहाते खेतों से गुजरना,
वो पोखर में जाकर छपा-छप करना,
वो बारिश में भीगना और भींगते रहना,
वो पानी मेंं कागज की नाव चलाना,
डोर पकड़ कर पतंगें उड़ाना,
वो धूल भरी सड़कों पर गाड़ी
के पीछे दौड़ लगाना,
वो डोर पकड़कर पतंगे उड़ाना,
लगे भूख कभी तो गन्ने चूसना,
वो छुप-छुपाकर बेर,अमरूद तोड़ना,
वो बगीचे से टिकोले तोड़ना,
नमक लगाकर दोस्तों संग खाना,
फिर दांत किट-किटाकर हंसना- खिलखिलाना,
था प्यारा सा कभी गांव अपना,
था प्यारा सा कभी बचपन हमारा,
छोड़ चले अब हम वह गांव हमारा,
हो गया अब पराया जो था कभी अपना.....।।
पूनम सिंह
हरियाणा
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