कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

ग़ज़ल....ghazal

ग़ज़ल

काफिला-ए-इश्क़ अब भी वही है जो पहले कभी था,
ज़ख्म भर चले हैं पर निशाँ वही है जो पहले कभी था।।

मुकाम-ए-मोहब्बत उड़ गई हवा के मानिंद-सी,
घर का पता अब भी वही है जो पहले कभी था।।

अरे! समेट लो इन बेपरवाह जुल्फों को कुछ याद आ रही,
अरे! हां इनमें खुशबू अब भी वही है जो पहले कभी था।।

लाख सितम ढाए तूने मुझपर ना कर एहसानों-करम अब
ए-जाने-जिगर फैसला अब भी वही है जो पहले कभी था।।

जाओ खुश रहो मुड़कर ना देखना अतीत के पन्नों में 
याद रहे अब वो रब्त का एहसास कहां जो पहले कभी था।।
   
राजन गुप्ता "जिगर"
जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

No comments:

Post a Comment