शब्द शब्द में गहराई है…
जब आंख खुली तो, अम्मा की गोदी का एक सहारा था।उसका नन्हा सा आंचल, मुझको भूमण्डल से प्यारा था।
उसके चेहरे की झलक देख,
चेहरा फूलों सा खिलता था।
उसके स्तन की एक बूंद से,
मुझको जीवन मिलता था।।
हाथों से बालों को नोंचा,
पैरों से खूब किया प्रहार।
फिर भी उस मां ने पुचकारा,
हमको जी भर के किया प्यार।।
मैं उसका राजा बेटा था,
वो आंख का तारा कहती थी।
मैं बनू बुढ़ापे में उसका,
सहारा,
लोरियो में वो गाती थी।।
उंगली को पकड़ मुझे, चलाया उसने सिखया था।
पढ़ने विद्यालय भेजा था।
मेरी नादानी को भी,
निज अन्तर में सदा सहेजा था।।
मेरे सारे प्रश्नों का वो,
फौरन जवाब बन जाती थी।
मेरी राहों के कांटे चुन,
वो खुद गुलाब बन जाती थी।
मैं बड़ा हुआ तो कॉलेज से,
एक रोग प्यार का ले आया।
जिस दिल में मां की मूरत थी,
वो रामकली को दे आया।
अब वो दिल और दिमाग पर छा गई है।
और उस मां की मूरत को,
दिल दिमाग से मिटा गई है।।
मां बेटा के इतने गहरे
रिश्तो को,
चंद दिनों में ही रामकली मिटा गई।
और अतीत की सारे यादों को,
इस प्यार नाम के रोग ने,
एक दम से मिटा दिया।
अब न हम यहां के है,
और न हम अब वहां के है।।
सिर्फ शब्दो के शब्दों में,
अब हम उलझे हैं।।

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