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दिल क्या सोचता हैं... Dil kya sochta h

दिल क्या सोचता  है 

मेरे दिल कि सरहद को पार न करना I
नाजुक है दिल मेरा वार न करना I
खुद से बढ़कर भरोसा है मुझे तुम पर I
इस भरोसे को तुम बेकार न करना I

दूरियों की ना परवाह कीजिये I
दिल जब भी पुकारे बुला लीजिये I
कहीं दूर नहीं हैं हम आपसे I
बस अपनी पलकों को आँखों से मिला लीजिये lI

दिल में हो आप तो कोई और ख़ास कैसे होगा I
यादों में आपके सिवा कोई पास कैसे होगा I
हिचकियां केहती है आप याद करते हो…I
पर बोलोगे नहीं तो हमें अहसास कैसे होगा ?

आरज़ू होनी चाहिए किसी को याद करने की……!
लम्हें तो अपने आप ही मिल जाते हैं I
कौन पूछता है पिंजरे में बंद पंछियों को I
याद वही आते है जो उड़ जाते है…!!

संजय जैन (मुंबई)

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