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आदर्श दुबे के ग़ज़ल

         

                 ग़ज़ल

हम कहीं भी हों मगर ये चिट्ठियां रह जाएंगी
फूल सब ले जाएंगे पर पत्तियां रह जाएंगी

काम करना हो जो करलो आज की तारीख में
आंख नम हो जायेगी फिर सिसकियाँ रह जाएंगी

इस नए कानून का मंजर यही दिखता है अब
पांव कट जाएंगे लेकिन बेड़ियाँ रह जाएंगी

 सिर्फ लफ़्ज़ों को नहीं अंदाज भी अच्छा रखो
  इस जगत में सिर्फ मीठी बोलियां रह जाएंगी

क्यूँ बनाते हो सियासत को तुम अपना हमसफ़र
सब  चले जाएंगे  लेकिन कुर्सियां रह जाएंगी

तूमको भी आदर्श पर आदर्श चलना है यहां
वर्ना इस   दलदल में  धसतीं  पीढियां रह जायेंगी

              आदर्श दुबे
             सागर मध्यप्रदेश

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