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आदर्श दुबे के ग़ज़ल.... Ghazal

 

             ग़ज़ल

सूना पड़ा है दिल का मकां,आपके वगैर
रह रह के उठ रहा है धुआं,आपके वगैर

यूँ तो खिले हैं फूल कई रंग के मगर
 फीके पड़े हें दोनो जहां, आपके वगैर

ये सोच कर ,में घूम रहा हूँ यहां वहां
राहत मिलेगी दिल को कहां,आपके वगैर

बस इसलिए में गांव छोड़ शहर मैं बसा
में क्या करूँगा रह के वहां, आपके वगैर

"आदर्श "कह रहा है कि मत आओ मेरे पास
  बर्बाद हो गया हूँ यहां ,आपके वगैर

           आदर्श दुबे
        सागर मध्यप्रदेश

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