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योग दिवस पर कविता

         योग दिवस 

कर   लो   कर  लो  भैया  योग
नहीं   तो    बस   जाएँगे   रोग
उठकर  जल्दी   कर  लो  योग
नहीं     तो     पछताएँगे   लोग
                 कर लो कर लो...
कुछसखा हमारेअब भी जवां हैं
कर       कर      करके     योग
मौसम     बे - मौसम     मस्ताने
फिर   भी   देखते  हैं  अफ़रोज़
                 कर लो कर लो...
सखियाँ   हैं  कुछ   हट्टी - कट्टी
करती      हैं       नित      योग
कलियों से खिल करके निखरीं
जैसे     फूल     गुलाबी    रोज
                 कर लो कर लो...
कुछ  अंकल  कर  करके योग
हुए      शर्बत     बात - बतोल
भरी  जवानी  भले  करत कुछ
अब नहीं दिखते गोल - मटोल
                 कर लो कर लो...
नित कवि  लेखक  गीत गवैया
गावें   कुछ  दोहा  छंद  सवैया
भोर   पहर    करते    हैं   योग
तभी तो  स्वस्थ रहे  सुख भोग
                 कर लो कर लो...
तन  से  मन  से   स्वस्थ  रहेंगे
कर      करके     नित     योग
होगी   देह   में    चुस्ती - फुर्ती
तब  ही   कर  पाएँगे  सहयोग
                 कर लो कर लो...
सवेरे    योग    करें!  तो   रोग
नहीं   कर    पाएँगे   गठजोड़
योग   का   ऐसा    है   संयोग
काया     रहती    है     बेजोड़
                 कर लो कर लो...
                      -डाॅ.यशोयश

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