दुआओं पे जब से मैं चलने लगा हूँ मोहब्बत के सांचे में ढलने लगा हूँ मेरी शोहरतें क्या छपी कागज़ों पर, ज़माने की आंखों को खलने लगा हूँ कवि धीरज कुमार पचवारिया
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