रीतिकालीन दरबारी कवि / Ritikal ke darbari kavi
रीतिकाल के लगभग सभी कवि राजाओं के अधीन रहते थे। रीतिकाल में Ritikaalin sahity में कवियों ने जनता की उपेक्षा किया और राज दरबार में बैठकर राजा की प्रसंशा करके थे। रीतिकाल के दरबारी कवियों की लिस्ट निचे देखे जो परीक्षा की दृष्टि महत्वपूर्ण है।
रीतिकाल के दरबारी कवि/ Ritikaal ke kavi
केशवदास (ओरछा),
प्रताप सिंह (चरखारी),
बिहारी (जयपुर, आमेर),
मतिराम (बूँदी),
भूषण (पन्ना),
चिंतामणि (नागपुर),
देव (पिहानी),
भिखारीदास (प्रतापगढ़-अवध),
रघुनाथ (काशी),
बेनी (किशनगढ़),
गंग (दिल्ली),
टीकाराम (बड़ौदा),
ग्वाल (पंजाब),
चन्द्रशेखर बाजपेई (पटियाला),
हरनाम (कपूरथला),
कुलपति मिश्र (जयपुर),
नेवाज (पन्ना),
सुरति मिश्र (दिल्ली),
कवीन्द्र उदयनाथ (अमेठी),
ऋषिनाथ (काशी),
रतन कवि (श्रीनगर-गढ़वाल),
बेनी बन्दीजन (अवध),
बेनी प्रवीन (लखनऊ),
ब्रह्मदत्त (काशी),
ठाकुर बुन्देलखण्डी (जैतपुर),
बोधा (पन्ना),
गुमान मिश्र (पिहानी)आदि
इस प्रकार सभी कवि किसी ना किसी रियासत के अधीन थे। कुछ ऐसे कवि भी हुए है जो स्वयं राजा थे।
जैसे- महाराज जसवन्त सिंह (तिर्वा),
भगवन्त राय खीची,
भूपति, रसनिधि (दतिया के जमींदार),
महाराज विश्वनाथ,
द्विजदेव (महाराज मानसिंह) आदि।
इस प्रकार Ritikaalin sahity रीतिकालीन साहित्य की रचना राजाओं के आश्रय में हुआ है । इसीलिए कल्पना प्रधान और मनोरंजन प्रधान साहित्य रीतिकाल में देखने को मिलते है । यह जानकारी आपको कैसे लगी कोमेट करके बताये की कृपा करे। यदि आपका कोई सुझाव है तो वह भी कोमेट में लिखे ।
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