विधा-मनहरण
विषय-संघर्ष
कृष्णप्रिया थीं बावरी,
कान्हा छोड़कर आए।
प्रेमव्यथा कहे बिना
मन मे अकुलाए।।
वृषभानु राधा प्यारी,
नेह रही जो लगाए।
गोपाल से मिले बिना
नैना नीर बहाएं।।
जानते जगतधारी
मन हीको समझाए
संघर्ष वो किये बिना,
पास नही थे आए।।
कन्हैया ओ लीलाधारी
जग रूप जो दिखाए।
राधेश्याम समा गई
बंशी धुन में गाए।।
स्वरचित
अमिता, रवि दूबे
छत्तीसगढ़
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