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यादों में अब भी क्यों परेशान करते हो

शीर्षक–  ‘यादों में अब भी क्यों परेशान करते हो’

"क्यों आज भी यादों में तुम परेशान करते हो
अब  तेरे ख्याबों में जीना अच्छा नहीं लगता 
अब  रातों में सपने बुनना अच्छा नहीं लगता
आज भी याद कर तेरे बातों से दर्द  उतना ही होता हैं।
उस वक़्त भी तकिया बन बाहों में सिमट जाते हो क्यों
जाना  आज भी यादों में तुम परेशान करते हो।

तेरी यादें मेरे हर जख्म को अब हरा करती हैं 
तो कभी आंखों से अश्रु की धारा बनकर बहती हैं
अब अक्सर तेरे यादों से  इतना दर्द होता हैं कि
उस वक़्त मानों पूरा अम्बर भी छोटा सा लगता हैं।
आखिर क्यों जाना यादों में इतना परेशान करते हो।

कैसें बताऊं तुम्हें अब रातें कैसे गुजरती हैं 
बिस्तर की हर सिलवट भी तेरी आंहें भरती हैं
तकिया तो मानों अब रूठ सा गया हैं मुझसे
कहता हैं मैं जान नहीं तेरा,तेरा जान तुझे छोड़ गया हैं
क्यों जाना यादों में इतना अब भी परेशान करते हो।

न थी मैं तेरी कभी चाहत तो दूर हो गई
और दूर हो गई मैं अपने घर समाज से
इतना तो तब भी  ठीक था जाना
मैं तो खुद को भी खुश रखना अब भूल गई
आखिर क्यों अब भी यादों में इतना परेशान करते हो जाना ।।"

रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश।

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