*खुशीयाँ दो*
विधा : गीतमेरी मुस्कराहट पर,
तुम्हें हंसी आती है।
मेरे दुख दर्द तुमको,
कभी देखते ही नहीं।
मेरा तो दिल करता हैं,
खुशी दू हर किसी को।
मैं अपने गम भूलकर,
तभी तो बाटता ख़ुशीयां।।
गमो की परवाह बिना,
सदा ही रहता हूँ प्रसन्न।
अब तुम ही बतलाओ,
मेरा क्या हैं इसमें दोष।
जब मुझको मिलती हैं,
शक्ति उस परवरदिगार से।
तो क्यो न भूल जाऊं मैं,
अपने सारे गमो को।।
समय कि पुकार को,
तुम समझो जरा लोगो।
प्रसन्नता ही जीवन का,
मूल आधार है लोगो।
तभी तो खुश रहो,
और खुशीयाँ बाटो तुम।
तुम्हारा जीवन सुखमय,
निकल जाएगा लोगो।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
02/08/2019
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