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कैसे कहूँ पीता नहीं

*कैसे कहूँ पीता नहीं*

कैसे कह दूं कि मैं पीता नही हूँ।
रोज जीने के लिए में पीता  हूँ।
जिंदगी में इतना सहा है हमने।
न पीते तो कब के मर गए होते।।

बहुत जालिम हैं ये दुनियां ।
बिन छेड़े लोग रह नहीं सकते।
शांति से वो जीने नहीं देंगे।
उन्हें जख्मो पर नमक लगाना हैं।
उस दर्द को सहने हमे पीना हैं।।

कितने गमो को दिल में रखे हुए है।
उन्हें रोकने के लिए हमें
पीना हैं।
वरना मुझे मौत गले लगा लेगी।
और निर्दोष होकर भी गुनेहगार बन जायेंगे।।

पीना तो एक बहाना हैं,
जिंदगी जीने के लिए।
 न पिऊ तो लोग,
घावों पर घाव देंगे।
और जिंदा होते हुए भी मारे हुए दिखेंगे।
इसलिए जिंदादिली के साथ,
जीने के लिए पीना है।।

जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुंबई)
25/07/2019

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