*ज्ञान के सागर*
हो हो हो —————–मुझे क्षमा करना ,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना ,
ओ मुनिराज।
सबसे पहले लूँगा,
आचार्य श्री का नाम।
सबसे पहले लूँगा विद्यासागर का नाम।।
त्याग और तपस्या,
कि मूरत है वो।
निश्चय और व्यवहार,
कि सूरत है वो।
ज्ञान का इतना,
भरा है भंडार ।
जितना जी चाहे
ले जाओ तुम आज।
हो हो हो —————–
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।।
आगम अनुसार चलते है वो।
आगम ही उनका है आधार।
अहिंसा के वो पुजारी है।
गऊ रक्षा के हितेसी है।
करते है जहां चातुर्मास,
तीर्थ बन जाता है वो क्षैत्र।।
हो हो —————–
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।
मुझे क्षमा करना,
ओ मुनिराज।।
संजय जैन (मुंबई )
27/08/2019

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