ग़ज़ल
ग़ज़ल के मिसरे को मिसरे से जोड़ा जाता है
तमाम रात ग़मों को निचोड़ा जाता है
पुराने जाल से बाहर निकलना मुश्किल है
इसीलिये तो रवायत को तोड़ा जाता है
उतर गये हैं तो अब जीतना ही मंज़िल है
कहाँ यू हमसे भी मैदान छोड़ा जाता है
उठाना पड़ता है फिर हाथ गर नहीं सुधरे
हाँ पहली बार में हाथों को जोड़ा जाता है
यहाँ पे हिंदू भी होंगे यहाँ मुसलमां भी
ये शाइरी है यहाँ सबको जोड़ा जाता है
दिखा दिया मिरे दुश्मन ने दोस्ती करके
ग़ुरूर टूटता कब है ये तोड़ा जाता है
लिखा था तूने जहां नाम खूने दिल से मेरा
वहीं से इश्क़ के कागज़ को मोड़ा जाता है
आदर्श दुबे
Aadarsh dubey


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