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Ghazal ग़लज

गजल


तेरा   कहना   यदि   मान   लिया    होता।
मेरी    जिंदगी    में ना   तुफान मचा होता।।

डूबता   कहां   मै   गमों   के   सैलाब    में।
इस   कदर प्यार  से  अनजाने न रहा होता।।

समझ  न  सका   मै   वो  रुसवा  कर  गयी।
आकर   दोस्तों   ने   पैगाम  न   दिया  होता।।

कटी  पतंग  की  तरह  हवाओं में  फिर  रहा।
मैं   बचता  कहां   तेरा  एहसान न रहा  होता।।

देती   उतार  खंजर   सरेआम  मेरे  सीने   में।
उस  दिन  बाजार में यदि  जाम न लगा  होता।।

स्वरचित                   ।। कविरंग।।
                 पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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