लालटेन लेके
कहां गया वो जमाना
वीता जो था पुराना
रात भर मै खोजती
गये कहां सनम दीवाना
पायी हूँ मै दान देके
खोजती मै लालटेन लेके।।
आहट तुम्हारी जोहती थी
साम होते ऊबती थी
निहारूं राह बारम्बार
नहीं आये सबसे पूछती थी
कहां छिपे हो पेन देके
खोजती मै लालटेन लेके।।
बिन देखे कहां चैन है
तेरे बिन सूनी रैन है
अब ना और तड़पाओ
रात बीती कब सैन है
अपनायी तुझे चेन देके
खोजती मै लालटेन लेके।।
आधिपत्य तेरा खो गया है
सब कुछ मेरा हो गया है
तेरे तन की स्वामिनी मै
तूं केवल जमूरा रह गया है
आयी हूँ घर तेरे दहेज देके
खोजती मै लालटेन लेके।।
सेवा की आस न करना
काम के लिए परिहास न करना
नाकों चना चबवा दूंगी
हफ्ते - हफ्ते उपवास भी करना
आयी हूँ घर मे तेरे लाख टेन देके
खोजती मै लालटेन लेके।।
स्वरचित ।। कविरंग।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर (उ0प्र0)


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