ग़ज़ल
ढूंढने का जब हुनर आता नहीं।
पास का भी कुछ नज़र आता नहीं।
ढूंढता बेचैन किसको फिर रहा,
दूर तक कोई नज़र आता नहीं।
हर तरह से खूब भरमाता रहा,
चैन इस दिल को मगर आता नहीं।
चल रहा हूँ एक मुद्दत से मगर,
मेरे ख्वाबों का नगर आता नहीं।
कर रहा हूँ हल मसाइल प्यार से,
कुछ मुझे ज़ुल्मों ज़बर आता नहीं।
हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
वरिष्ठ प्रबंधक, सेवानिवृत्त,
पंजाब नेशनल बैंक,
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