अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस,पृथ्वी और पर्यावरण को न करे विवश।।
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संपूर्ण मानव एवं जीव-जंतु जिसकी गोद में अपना संपूर्ण जीवन बिताते है और अंत में उसी में समाहित हो जाते है, उस पृथ्वी के प्रति अपने कर्तव्य को करने हेतु संकल्प का दिवस हैं "अन्तरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस"। यह प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाता है। अनंत काल से यह पृथ्वी हमेशा ही पुजीत रही है।जिस पृथ्वी को माँ कहा गया है,उस देवी को अपने पैर से स्पर्श नही करना चाहिए पर हम सबकी विवशता है कि ऐसे ना किये बिना हम सबका कोई कार्य सम्भव नही हैं।
इसलिए शास्त्रों में सुबह उठते ही देवी पृथ्वी पर पैर रखने से पहले ही उनसे क्षमा मांगने को बताया गया है:-
समुद्र-वसने देवि, पर्वत-स्तन-मंडिते।
विष्णु-पत्नि नमस्तुभ्यं, पाद-स्पर्शं क्षमस्व मे॥
अर्थात समुद्र रुपी वस्त्र धारण करने वाली पर्वत रुपी स्तनों से मंडित भगवान विष्णु की पत्नी, हे माता पृथ्वी! मुझे पाद (पैर) स्पर्श के लिए क्षमा करें।
बिना पैर रखे हमसबका कार्य असंभव है परंतु जो इस पृथ्वी पर पर्यावरण है उसको बचाना तो सम्भव है।
"पृथ्वी दिवस" या "अर्थ डे" शब्दों को लोगों के बीच सबसे पहले लाने वाले जूलियन कैनिंग थे।22 अप्रैल जूलियन कैनिंग का जन्म दिवस था। कैनिंग ने अपने जन्मदिवस को "अर्थ डे" के साथ मनाने का फैसला किया।सन 1969 में उन्होंने लोगों को इस शब्द से अवगत कराया।
कुछ समय पश्चात पर्यावरण को लेकर चिंतित रहने वाले अमेरिकी सीनेटर, जेराल्ड नेल्सन ने इस दिवस की शुरूआत पर्यावरण के शिक्षा के रूप में की। वे पर्यावरण को लेकर लोगों में जागरूकता लाने का अथक प्रयास किए। जेराल्ड के प्रयास से इस दिवस को पहली बार सन 1970 में मनाया गया था।आज विश्व के लगभग 200 देशों में इस अंतरराष्ट्रीय पृथ्वी दिवस को मनाया जाता है।इस दिवस को एक वार्षिक कार्यक्रम के रुप में मनाने की शुरुआत पर्यावरणीय सुरक्षा का बेहतर ध्यान देने के लिये, राष्ट्रीय समर्थन प्राप्त करने के लिये प्रारम्भ हुई।पर्यावरणीय मुद्दे के साथ ही युद्ध-विरोधी आंदोलन को नियंत्रित करना, दूसरे जीव-जन्तु के लिये लोगों की जागरुकता बढ़ाने के लिये पृथ्वी दिवस की स्थापना की गयी थी।
प्रत्येक वर्ष इस दिवस को मनाने का कुछ विशेष थीम(विषय) होता है।वर्ष 2020 के लिए थीम (विषय) "जलवायु कार्रवाई" है।
पर्यावरण में ग्रीन हाउस गैसों के बढ़ने से जलवायु आपातकाल की स्थिति बढ़ रही है। बीते वर्ष 2018-19 में चक्रवात, जंगल में आग,गर्म हवाएं, सूखा आदि प्राकृतिक आपदाएं बहुत ज्यादा देखने को मिली है।विश्व के मौसम विज्ञानी तथा जलवायु विज्ञानी मौसम की घटनाओं पर ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को देख रहे है। वे इसकी चिंता से लोगो को अवगत करा रहे हैं।विश्व के कई देशों के युवाओं के द्वारा जलवायु आपातकाल की आवाज उठ रही और इसे समय रहते देश के सरकारों को समझना जरूरी है।
पूरे सौरमण्डल में पृथ्वी ही ऐसा ग्रह हैं जिस पर जीवन संभव हैं।इस ग्रह पर पानी की अधिकता है और पानी की अधिकता के कारण ही इसे "नीला ग्रह" के नाम से भी जाना जाता है। प्रकृति द्वारा हमसबको पहाड़,नदियां,पर्वत, हरे-भरे वन और धरती के नीचे छिपी हुई अन्य-अन्य प्रकार के खनिज संपदा धरोहर के रूप में उपहार स्वरूप प्राप्त हुए हैं।और हम सबकी जिम्मेदारी है कि इस सम्पदा को कैसे बचाए अर्थात यह तय करे कि कैसे इसकी रक्षा की जाए।
आज शहरीकरण और औद्योगिक वृद्धि के कारण वातावरण दिनों दिन प्रदूषित होते चला जा रहा है।कई ऐसे शहर है जहां की एयर क्वालिटी इंडेक्स कभी-कभी इतना बढ़ जाता है की वहां सांस ले पाना मुश्किल हों जाता है।
जल के प्रदूषण के कारण समस्त जल स्रोत नदियां,नहरें, झीलें समस्त भूमिगत जल स्रोत पूरे मानव अस्तित्व को खतरे में डाले जा रहा है। जल प्रदूषण के कारण कई ऐसे शहर है जो बूँद-बूँद पानी को तरस रहे है।कही अल्पवृष्टि कही अनावृष्टि, यह सब पर्यावरण को बचाने की ओर ध्यान नही देने का ही दुष्परिणाम है।उद्योगों की स्थापना तथा शहरों, सड़कों, राजमार्गों और बांधों के निर्माण के लिये वनों की काटने से वनस्पति के साथ-साथ जीव जन्तुओं का नाश होता है।
इन सबका असर हमारी पृथ्वी पर होता है। हम अपनी मेहनत से धन तो कमा सकते हैं लेकिन प्रकृति की इन धरोहरों का जो दिनों दिन ह्रास हो रहा है अगर समय रहते नहीं बचाया गया तो जो दुर्दशा हम सबकी हो रही, उससे भी कही ज्यादा दुर्दशा निश्चित है। हम सब कहते हैं कि हमसब विकास पथ पर बढ़ रहे है परंतु पृथ्वी और पर्यावरण के रक्षा के बिना यह विकास शून्य है। पर्यावरण समस्या से दुःखी होकर हेनरी डेविड के ने कहा-: "भगवान का शुकर है कि इन्सान उड़ नहीं सकता, नहीं तो यह पृथ्वी की तरह आकाश को भी गन्दा कर देता और उसे बर्बादी के कगार तक पंहुचा देता।" हम सभी पृथ्वी और पर्यावरण को विवश न करे।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भारतीय स्तर पर नदियों को जोड़ने की योजना का ख़ाका बनाया। वे जल संरक्षण के साथ-साथ पर्यावरण को कैसे समृद्ध बनाया जाए इसपर भी बल दिए और अन्य कार्य किए।
प्रत्येक वर्ष हम सभी अपना जन्मदिवस हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाते है कम से कम अपने जन्मदिवस पर ही सही एक पेड़ अवश्य लगाए।वनों आइये हम सभी इस पृथ्वी दिवस पर यह संकल्प ले की हमसब मिलकर अपने प्राकृतिक विरासत की रक्षा किसी भी कीमत पर करेंगे। सुंदर लाल बहुगुड़ा ने वर्षो पहले इस विरासत को समझते हुए चिपको आंदोलन प्रारम्भ किया था। उस आन्दोलन में अनेकों लोगो ने उनका साथ दिया। जंगलो को कटाई से बचाने के लिए लोग पेड़ो से चिपक जाते थे।
कार्बन डाइऑक्साइड के कम से कम उत्सर्जन हेतु भी प्रयास करना होगा। आज भी कई ऐसे पर्यावरण से जुड़े लोग है जो पर्यावरण की महत्ता समझ रहे और इसको बचाने के लिए प्रयासरत है केवल आवश्यकता है कि हमलोग उनका साथ दे।
✍🏻 राजीव नंदन मिश्र (नन्हें)
सत्यनारायण-पार्वती भवन,
सत्यनारायण मिश्र स्ट्रीट,
गृह संख्या:-76, ग्राम व पोस्ट-सरना,
थाना:-शाहपुर,जिला:-भोजपुर
बिहार-802165
ढेरो शूभकामनाए।खूब उन्नति करे।
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