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कोरोना वारियर्स को समर्पित मेरी यह कविता मैं उनके जज्बे को सादर वंदन करता हूँ।

टूटा हुआ दीया

मैं टूटा हुआ  दीया हूँ लेकिन, तेल नही गिरने दूगाँ।
आ जाए लाख आँधियां भी,मैं बाती न बुझनें दूगाँ।

मुझकों न  जरूरत महलों की, वहाँ  बड़ी बड़ी  मशालें है।
मत मुझें जलाना मंदिर में,वहाँ मणि माणिक के उजालें है।

मुझें जला छोड़ना छप्पर में,मैं अँधियारा न रूकने दूगाँ।
आ  जाए  लाख  आँधियां  भी,मैं  बाती  न  बुझनें दूगाँ।

सोने चाँदी  से गढ़कर  के,मत  मढ़ना  रूप सुहाना तुम।
न  रंगों से  रंगना  मुझकों,न  सौरभ  से  महकाना  तुम।

कोरी  माटी ले, रूप   ढाल, मैं  मोल  नहीं  घटने  दूगाँ।
आ  जाए  लाख  आँधियां भी,मैं  बाती  न  बुझनें दूगाँ।

मैं  दीन -हीन हूँ  माना कि,तुम  थोड़ा सा  संबल दे दो।
मेरी अधजली वर्तिका को ,सूरज की एक किरण दे दो।

फिर आन खड़े हो झंझावत,निज कदम नहीं हटने दूगाँ।
आ  जाए लाख  आँधियां भी, मैं  बाती  न  बुझनें  दूगाँ।

मुझकों  गरीब  की खोली  की, चिन्ता  हरदम  सताती है।
महलों की फिक्र नहीं मुझकों,वहाँ चाँद सजी जगराती है।

रख  आस  जलाना  खोली  में,मुस्कान  नही मिटनें दूगाँ।
आ  जाए  लाख   आँधियां  भी, मैं  बाती  न बुझनें  दूगाँ।

हेमराज सिंह कोटा राजस्थान
मौलिक रचना

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