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हरमाल वाला

हरमाल वाला


देखा रस्ते पे मैंने एक ठेला
जहां लगा मालों का मेला
स्त्री श्रृंगार सभी सोहे थे
कदरदान कद के छोटे थे

कंघी, कड़ा,केवड़ा साजे
याद आए मुझे चन्द मुहावरे
कोने से झांकी मोती माला
अंखियों का काजर भी काला

दुल्हन सा ठेला सजावाया
दुकनदार ने जोर चिल्लाया
आओ श्रृंगार करो मोरा
सस्ता अच्छा अद्भुद चोखा

हाथों की मेहंदी भी लाया
चूनर उसने लाल सजाया
अधरो की लाली सरकाई
चूड़ियां ज़ोर ज़ोर खनकाई

सारा श्रृंगार किए वो रेला
कूचों से गुजरा नन्हा मेला
चार चक्रीकाओं की सवारी
दुकनदार की वो घरवाली

नेहा शुक्ला
डी ० एल ० एड ० छात्रा
डाक तार कॉलोनी पोनी रोड
शुक्लागंज (उन्नाव)

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