कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

ग़ज़ल आकिब जावेद ghazal aakib javed

ग़ज़ल

ज़िन्दगी क्यों बुझी सी रहती है
आँख में कुछ नमी सी रहती है

गुमशुदा सी कहीँ ख़्यालों में
ज़िन्दगी अजनबी सी रहती है

बेवफ़ा ज़िन्दगी में क्या आई
ज़िन्दगी में कमी सी रहती है।

आह दिल की मेरी भी सुन लेती
देख के देखती सी रहती है

कुछ खुला सा है मेरे भी दिल में
रौशनी बाँटती सी रहती है

ज़िन्दगी के सवाल हल करते
ज़िन्दगी यक-फनी सी रहती है

सोच का फ़र्क होता है आकिब'
दिल में तो तिश्नगी सी रहती है

आकिब जावेद

No comments:

Post a Comment