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मकड़ जाल makad jaal

मकड़ जाल


ये मकड़ जाल अक्सर मेरे साथ
लुका छिपी खेला करते है.........

गर्द को भर अपने गर्भ में
गंदगी का आलम लिए
भित्तियों की ओट में दुबक
अपनी पहचान छुपाया करते है ..........

अशुद्धता की चरम सीमा पर 
पहुंच छत पर आशियाना बना
गृह शोभा को ग्रहण लगा
सदन पर साम्राज्य किया करते है ..........

कीटों को पनाह देकर
पट के किनारे लगा धूल को
कोनों में,स्तंभों के जोड़ में
ज्यामिति आकृतियां बनाया करते है.......

लूतिका अपने शिरोवक्ष से
कीटों को आमंत्रित कर
उदर की भूख को मिटाने
रेशमी जाल बुना करते हैं.......

अपने विष से हमें डरा
दूर रहने की सलाह देकर
बुहारी को अपना रिपु बना
अक्सर हमसे गुथा करते हैं.......

आगोश में अपने कीटों को लिए
शिकारी दृष्टि उन पर गढा
घर को सूना छोड़ने की
हमसे चेष्टा किया करते हैं........

माताजी की डांट से बचने 
सफाई का धर्म निभाते हुए
इतनी शिद्दत से बनाए घर को
हम अक्सर उजाड़ दिया करते हैं.......

ये मकड़ जाल अक्सर मेरे साथ
लुका छिपी खेला करते हैं........

पट- दरवाजा 
लूतिका - मकड़ी
बुहारी- झाड़ू

🖊अंजुल
अंजू अग्रवाल (खेरली,अलवर) [शिक्षिका और कवयित्री]

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