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हमीद कानपुरी, ग़ज़ल ghazal

ग़ज़ल


बर्क़ रफ्तार से फिर तुम भी सुधर जाओगे।
साथ जब  नेक मिलेगा  तो संवर  जाओगे।

सरकशी पर‌  है उतारू  यहाँ की तेज़ हवा,
एक होकर  न  रहोगे  तो बिखर  जाओगे।

कारवां  देर तलक फिर  न रुकेगा हरगिज़,
एक  ही   ठौर  जो   तादेर  ठहर‌  जाओगे।

शे'रगोई   के उसूलों   की ज़रा  कद्र  करो,
बह्र  में  शे'र  कहोगे   तो निखर  जाओगे।

दौरे जम्हूर  में फिर पा  न सकोगे  मंज़िल,
आमजनता कीजो नज़रों सेउतर जाओगे।

हमीद कानपुरी,
अब्दुल हमीद इदरीसी,
179, मीरपुर, कैण्ट, कानपुर-208004

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