कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

एक चिड़िया Ek Chidiya (सोनल ओमर)

शीर्षक - एक चिड़िया

(स्वरचित रचना)
____________________________

रोज सवेरे एक चिड़िया
मेरी खिड़की पर आकर बैठती है।
क्यों हो तुम ऐसी
मानो वह मुझसे कहती है।।

रंग-बिरंगे पंख खोलकर
जब वो आकाश में उड़ जाये।
मुझको भी उड़ने के लिए
जैसे वह मुझसे कह जाये।।

मुझको तो दो पंख सिर्फ
तुमको विशाल शरीर दिया।
मैंने तो विस्तृत गगन छुआ,
पर तुमने अब तक क्या किया??

इस सवाल का जवाब अब उसे,
सोचती हूँ...कैसे मैं दूँ?
स्वयं की लाचारी में ही,
बेबस सी मैं रहती हूँ।।

पिंजरे में कभी फसी नहीं,
मोह-माया से अनजान है तू।
पेड़ों से कभी दिल न लगाया,
ऊँचे गगन की मेहमान है तू।।

अपना पिंजरा तोड़कर
कैसे खुले गगन में उड़ जाऊँ?
कैसे संस्कार जी कर मैं,
अपनों के मोह को ठुकराऊँ??

सच कहती हो तुम,
मुझको विशाल शरीर दिया।
पर तोड़ सकूँ इन जंजालों को,
मुझको ऐसा कभी न बल दिया।।

माना तुमको देखकर,
आजादी में साँस लेना चाहूँ मैं।
पर अपनों को छोड़ शायद ही,
इस पिंजरे को खोल उड़ पाऊँ मैं।।

-सोनल ओमर
कानपुर, उत्तर प्रदेश

No comments:

Post a Comment