कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

कविता भूख (मनोज कुमार वर्मा) kavita bhukh

शीर्षक - भूख


सवेरे आती है भूख, शाम होते होते बढ़ जाती है भूख।
       मौत आने तक नहीं रुकती,,,,, सांस लेते ही बढ़ जाती है भूख।

पेट के सागर में हिचकोले खाती है भूख,,,, न जाने कितनो का घर उजाड़ देती है भूख।
       पेट के सागर में ना रुकने वाली बाढ़ की तरह आती हैं भूख।

भगवान ही जाने,, कोई दीपक की ज्योति है क्या।
जब तक मिलता है तेल,, जलती जाती हैं, चलती जाती है।

जैसे ही थोड़ा कुछ मिल जाता है खाने को , तो सांसे चलती जाती है, भूख मिटाती जाती है।

थोड़ा बहुत खाकर, थोड़ी मिट जाती हैं भूख,
        जैसे ही थोड़ी वर्षा बाद धरती जाती है सुख।

ना जाने कभी - कभी फिर क्यों उमड़ जाती है भूख।

आग भूख, की  कभी - कभी ऐसे डराती है।
    देखकर उसे रूह कांप जाती है।

हाथ मांगते है भीख,
           मिटाने के लिए भूख।

कभी गरीब मां के आंचल से,दूध की जगह खून निकलता है,
   अगर पेट हो खाली , तो मुंह से थोड़ी ही राम निकलता है।
 
आग ये पापी पेट की, इंसान को बेबस बनाती है,
     एक निवाला मिलते ही थोड़ी,
     पुरानी भूख मिट जाती है।
             पुरानी भूख मिट जाती हैं।

संक्षिप्त परिचय - मनोज कुमार वर्मा।
गांव - बासनी
तहसील - लक्ष्मणगढ़
जिला - सीकर , राजस्थान

No comments:

Post a Comment