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Samay समय कविता (कवि सुरेश सौरभ ग़ाज़ीपुरी)

समय 


जी! समय मरता नहीं,
समय बर्बाद होता है। 
समय के साथ जो ढलता,
वही आबाद होता है।।

समय को बांध सकता कौन, 
बड़ी मुश्किल पहेली है।
न कोई आजमा सकता , 
सफलता ही सहेली है।।

तपस्वी लड़ने लगता है,
परिश्रम अनवरत करता ।
दिखाई देती है मंजिल,
उड़ाने अनवरत भरता।।

जो दुरुपयोगी होते,
अंततः हार जाते हैं।
समय के फँस शिकंजे में,
स्व वृत्ति खार खाते हैं।।

घड़ी में बज रहे घण्टे,
समय के सूत्र होते हैं।
समय के साथ जो चलता,
समय के पुत्र होते हैं।।

ना कोई अंत होता है,
ना कोई ओर होता है।
अवधि में काज जो कर ले,
उसी का छोर होता है।।

सफलता सौम्यता में ही,
अवधि की परिधि होती है।
समय के सांचे जो ढलता, 
उद्गारित अम्बुधि होती है।।

पिपासा हर प्राणी होता है,
जिजीविषा बहु झलकता है।
सत्य संयमित शोधित जो,
वह समय के साथ चलता है।।

समय नायक भी होता है,
समय खलनायक होता है।
समय के सारथी जो बनता,
वही लायक भी होता है।।

   स्वरचित मौलिक रचना।
सुरेश सौरभ ग़ाज़ीपुरी
रामपुर फुफुआव, ज़मानियाँ,
 ग़ाज़ीपुर, उत्तर प्रदेश,

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