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निर्मला उपन्यास की मूल कथा / niramala upnyaas ki kahani/ प्रेमचन्द और निर्मला उपन्यास

 

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 निर्मला उपन्यास की मूल कथा

प्रेमचन्द कृत 'निर्मला' उपन्यास में अनमेल विवाह और दहेज-प्रथा की दु:खांत कहानी है। उपन्यास के अंत में निर्मला की मृत्यु इस कुत्सित सामाजिक प्रथा को मिटा डालने के लिए एक भारी चुनौती है। पिता उदयभानु लाल की मृत्यु हो जाने पर माता कल्याणी दहेज न दे सकने के कारण अपनी पुत्री निर्मला का विवाह भालचन्द्र और रँगीली के पुत्र भुवन मोहन से न कर बूढ़े वकील तोताराम से कर देती है। तोताराम के तीन पुत्र पहले ही से थे, इस पर भी उनकी विलासिता किसी प्रकार कम न हुई। इतना ही नहीं, निर्मला के घर में आने पर एक नवयुवती वधू के हृदय की उमंगों का आदर और उसे अपना प्रेम देने के स्थान पर तोताराम को अपनी पत्नी और अपने बड़े लड़के मंसाराम के पारस्परिक सम्बन्ध पर विलासिताजन्य सन्देह होने लगता है, जो अंततोगत्वा न केवल मंसाराम के प्राणंत का कारण बनता है, वरन् सारे परिवार के लिए अभिशाप बन जाता है।
     दूसरा लड़का जियाराम भी घर के विषाक्त वातावरण के प्रभावांतर्गत कुसंग में पड़कर निर्मला के आभूषण चुराकर ले जाता है। रहस्य का उद्घाटन होने पर वह भी आत्महत्या कर लेता है।  सबसे छोटा लड़का सियाराम विरक्त होकर साधु हो जाता है। परिवार में निर्मला की ननद रुक्मिणी उसको फूटी आँखों भी नहीं देख सकती और प्राय: निर्मला के लिए दु:ख और क्लेश का कारण बनती है। तोताराम दो पुत्रों के विरह से संतप्त होकर सियाराम को ढूँढ़ने निकल पड़ते हैं। उधर भुवन मोहन निर्मला को अपने प्रेम-पाश में फाँसने की चेष्टा करता है और असफल होने पर आत्महत्या कर लेता है। निर्मला के जीवन में घुटन के सिवाय और कुछ नहीं रह जाता। अंत में वह मृत्यु को प्राप्त होती है। जिस समय उसकी चिता जलती है, तोताराम लौट आते हैं। इस प्रकार उपन्यास का अंत करूणापूर्ण है और घटना-प्रवाह में अत्यंत तीव्रता है।

      उपकथायें  निर्मला और तोताराम की इस प्रधान कथा के साथ सुधा की कहानी जुड़ी हुई है। तोताराम को जब निर्मला और मंसाराम के सम्बन्ध में निराधार सन्देह होने लगता है और, निर्मला अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए मंसाराम के प्रति निष्ठुरता का अभिनय करती है और जब मंसाराम को घर से हटाकर बोर्डिग में दाख़िल कर दिया जाता है, तो बालक मंसाराम के हृदय को मार्मिक आघात पहुँचना है। उसकी दशा दिन-पर-दिन गिरती जाती है, और अंत में अपने पिता का भ्रम दूरकर वह मृत्यु को प्राप्त होता है। तोताराम को मानसिक विक्षोभ होता है। इसी समय समय प्रेमचन्द ने सुधा और उसके पति डॉ. भुवन मोहन का (जिसके साथ निर्मला का पहले विवाह होने वाला था
 
        प्रेमचन्द ने निर्मला का मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कराया है। सुधा और निर्मला घनिष्ठ मित्र बन जाती हैं। सुधा अपने शील सौजन्य और सहानुभूतिपूर्ण हृदय से निर्मला को मुग्ध कर लेती है। वह निर्मला की छोटी बहन कृष्णा का विवाह अपने देवर से कराती ही नहीं वरन् निर्मला की माता की गुप्त रूप से अधिक सहायता भी करती है। निर्मला के मायके में कृष्ण के विवाह के बाद सुधा का पुत्र मर जाता है। निर्मला के भी एक बच्ची पैदा होती है। उसे लेकर वह अपने घर लौट आती है। एक दिन सुधा की अनुपस्थिति में जब निर्मला उसके घर गयी तो डॉ. भुवन मोहन आत्मसंयम खो बैठते हैं। पता लगने पर सुधा अपने पति की ऐसी भर्त्सना करती है कि वह आत्मग्लानि के वशीभूत हो आत्महत्या कर लेता है। इस घटना के पश्चात् तो निर्मला के जीवन की विषादपूर्ण कथा अपने चरम सीमा पर पहुँच जाती है।

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