हिंदी साहित्य का रीतिकाल / Hindi sahity or Ritikaal
रीतिकाल का समय / Ritikaal ka Samay
हिंदी साहित्य में रीतिकाल की शुरुआत सन् 1700 ई. के आस-पास माना जाता है। और रीतिकाल का समय 1700 संवत से 1900 संवत यानी 1643ई० से 1843ई० तक माना जाता है। इस युग के कवि राजाओं के आश्रय में रहते थे। रीतिकाल के अधिकांश कवि किसी ना किसी राजा के दरबार में रहते थे। इस युग में तात्कालिक दरबारी संस्कृति और संस्कृत साहित्य से हिंदी साहित्य को बढ़ावा मिला। संस्कृत साहित्यशास्त्र के प्रति लगाव से रीतिकाल में शास्त्रीय ग्रन्थों की रचनाएं और आचार्य कवियों का जन्म हुआ। रीतिकाव्य रचना का आरंभ एक संस्कृतज्ञ आचार्य केशवदास ने किया। केशवदास की प्रसिद्ध रचनाएँ कविप्रिया, रसिकप्रिया और रामचंद्रिका हैं।
रीतिकाल का अर्थ / Ritikaal ka arth
रीतिकाल साहित्य में रीति का अर्थ मार्ग, पद्ति, परिपाटी है। अर्थात रीतिकाल में सभी कवि किसी परिपाटी (मार्ग) का अनुसार करते थे। इस युग के कवि किसी विशेष रीति को ध्यान में रखकर साहित्य की रचना करते थे।
रीतिकालीन कवि काव्यशात्रीय लक्षणों को ध्यान में रखकर काव्य लिखा करते थे। इस काल में कई ऐसे कवि हुए हैं जो आचार्य भी थे और जिन्होंने विविध काव्यांगों के लक्षण देने वाले ग्रंथ भी लिखे। इस युग में शृंगार की प्रधानता रही। यह युग मुक्तक-रचना का युग रहा। मुख्यतया कवित्त, सवैये और दोहे इस युग में ज्यादा लिखे गए। कवि राजाश्रित होते थे इसलिए कविता (काव्य) में जन साधारण की उपेक्षा हुई है।
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