संस्कृत भाषा का इतिहास/ Snskrit Bhasha ka itihas
संस्कृत भाषा का इतिहास
जिस प्रकार पृथ्वी पर अनेक जीव आते-जाते रहते हैं, लेकिन पृथ्वी का अस्तित्व वैसे का वैसे बना रहता है। ठीक उसी प्रकार संस्कृत भाषा / Snskrit Bhasha भी अपने विशाल-साहित्य कोष, लोकहित की भावना, धर्मिक -कर्म कांड, वेद-पुराण तथा उपसर्ग - प्रत्ययों के द्वारा रोज नये - नये शब्दों के निर्माण की असीमित क्षमता को धारण किए हुए सदा के लिए अमर है।
आधुनिक विद्वानों के अनुसार Snskrit Bhasha / संस्कृत भाषा का अखण्ड प्रवाह पाँच सहस्र वर्षों से बहता चला आ रहा है। इस बीच हजारों भाषाओं और बोलियों का अस्तित्व बना और मिटा। लेकिन Snskrit Bhasha / संस्कृत भाषा ज्यों-का त्यों अपना अस्तित्व बनाए हुए है। भारत में Snskrit Bhasha / संस्कृत भाषा को आर्यभाषा भी कहा जाता है।
प्राचीन समय से ही इस संस्कृत भाषा का सर्वाधिक व्यापक और सम्पन्न स्वरूप देखने को मिलता है। Snskrit Bhasha / संस्कृत भाषा के माध्यम से भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभा, अमूल्य चिन्तन, मनन, विवेक, रचनात्मक, सर्जनात्मक और वैचारिक प्रज्ञा का सृजन हुआ है। आज भी सभी क्षेत्रों में इस भाषा के द्वारा ग्रन्थनिर्माण की मंद-मंद धारा अविच्छिन्न रूप से बह रही है।
वर्तमान समय में भी संस्कृत भाषा / Snskrit Bhasha पढ़ी और पढ़ाई जाती है। अब इस भाषा क्षेत्र अत्यंत सीमित हो गया है। सीमित क्षेत्र ही सही पर आज भी संस्कृत बोली, पढ़ी और लिखी जाती है। आज भी संस्कृत श्लोकों का व्याख्यान होता हैं और भारत के विभिन्न प्रादेशिक पंडित परस्पर वार्तालाप में संस्कृत का प्रयोग करते हैं। Snskrit Bhasha / संस्कृत भाषा धार्मिक कार्यों के लिए आज भी प्रयोग किया जाता है।
भारत मे ही नहीं संसार के किसी भी कोने में अगर हिंदुओं का धार्मिक कार्यक्रम होता है तो Snskrit Bhasha/ संस्कृत भाषा में ही मन्त्रो का उच्चारण और जनभाषा में अनुवाद किया जाता हैं। यही कारण है कि आज संसार की सभी प्राचीन भाषा ग्रीक और लैटिन आदि मृत भाषाओं में शामिल हो चुके है, लेकिन आज भी Snskrit/ संस्कृत की स्थिति भिन्न है और संस्कृत भाषा अमरभाषा बनी हुई है।
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