कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

मेरी विरह गाथा। गीत

चंद्रपाल कुशवाहा"सीपी"

गीत

  मेरी विरह गाथा

राधा बनी तुम कान्हा बना मै,
तो विरह की वेदना सहानी पड़ेगी।
जल्द ही आयेगी रुक प्रियतमा,
तुम्हे छोड़ रस्मे निभानी पड़ेगी।
गुम होगी ग्रंथों के पन्नों में सिमटी,
मीरा की दुनिया कहानी पढ़ेगी।
सिया बनने की चाह जो होगी ,
तो सुन पुरुषोत्तम पहले से हूँ मै।
धरम संकट तो आयेगा निश्चित,
जंगल में रात बितानी पड़ेगी।
ख्वाइश तुम्हारे जिद के आगे,
मुझ दयालु को तीर चलानी पड़ेगी।
समय चक्र के आगे झुककर,
सीमा पार जिंदगी जीनी पड़ेगी।
युद्ध भी होगा भयंकर प्रिये!
रणचंडी तुम्हे बन जानी पड़ेगी।
प्रेम की धारा बहे न बहे,
सरिता लहू की बहानी पड़ेगी।
मोहब्बत की धरा प्रेम के बीज,
तड़प अंकुर में दिखानी पड़ेगी।
अग्नि परीक्षा में खरी जो उतरी,
तो आहें पत्थर की भरानी पड़ेगी।
प्रजा के हित में निर्णय होगा,
ऋषि की रोटियां खानी पड़ेगी।
जायज ही होंगी औलादें,
सीपीकथा तुम्हे ही सुनानी पड़ेगी।
अजनबी होगी राहों की,
यह सोच कसमे भुलानी पड़ेगी।
मुझसे भी ज्यादा विलक्षण होंगे,
विद्या ऐसी पढ़ानी पड़ेगी ।
जैसे तेरा अवतरण हुआ,
वैसे ही धरती समानी पड़ेगी।
विरह हमारे नस नस में है,
मन-मंदिर को बात बतानी पड़ेगी।
शुरू से युगों की गणना करेंगे,
सृष्टि नई रचानी पड़ेगी।

चंद्रपाल कुशवाहा"सीपी"
सतना मध्यप्रदेश

No comments:

Post a Comment