*चरित्र*
तुम माँगते हो मुझसे चरित्र का प्रमाण पत्र!!!
यह अधिकार तुम्हें दिया किसने???
समाज ने?
आदिम युग से
तुम्हारी हुकूमत रही है समाज पर,
इसलिए??
या इसलिए कि
समस्त अधिकार तुमने अपने नाम कर रखे हैं??
तुम्हें अधिकार है नारी को वेश्या बनाने का...
सफ़ेद वस्त्र धारण कर स्वयं को उजला सिद्ध करने का...
रात के अँधेरो में छुपकर,
अपनी देह तृप्ति का...
नारी को अंदर तक भेदती दृष्टि से अवलोकन करने का...
यह तो कुछ भी नहीं
तमाम मानसिक प्रताड़ना
प्रदान करते हो तुम नारी को....
उसके एहसास,
उसके वजूद,
उसके अंतर्मन को प्रताड़ित करके ,
कितना अट्टहास लगाते हो तुम...
उसका हँसना
,उसका मुस्कुराना
उसकी उदासी
हर अभिव्यक्ति पर प्रश्नचिन्ह
तुम्हारा मौलिक अधिकार है!!!
वह उदास है केवल तुम्हारे प्रश्रचिन्हों से
उसे कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता
कितने अधिकार प्राप्त हैं तुम्हें
किंतु तुम पढ़ न पाए उसे
वेदना बस इतनी सी है
यदि भीड़ में खिलखिलाना
दूसरों के दर्द बाँटना, आदि आदि
चरित्रहीनता है तो मान लेती हूँ...
तुम सत्यवादी हरिश्चंद्र हो
मैं युगों युगों से अभिशप्त नारी....
*अतिया नूर*
*ए ई 58*
*एन टी पी सी,ऊँचाहार*
*रायबरेली, उत्तर प्रदेश*229406
Yatharth se parichye
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteGood reflection of upper caste SAMAJ.
ReplyDeleteVery nice poem
ReplyDeleteSatya Vachan
By Safiya Zameer
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