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मैं पानी बोल रहा हूँ..

विधा– कविता 

शीर्षक–‘ मै पानी बोल रहा हूं’

“ नगर – नगर में कोलाहल है
   पानी  ऐसा बोल रहा है ।
कठिन साधना से मैं मिलता
तन– मन को सिचिंत करने को
वन और उपवन सूख रहे है
प्रकृति भी बदहाल हुआ है
नहीं चढ़ पाते  है ताजे  फूल
देवी और देवथानो में
अब मैं पहले जितना स्वच्छ नहीं
पहले जितना उपलब्ध नहीं
मै चला निरन्तर अब नीचे नीचे 
अपना सोचो तुम हे!मानव
मै तो मेरा जीवन हूं
यदि मैं चला गया नीचे तो
तेरा पौरुष भी घट जाएगा
जब मधुबाला रूठेगी  तेरी
कैसे उसे मनाएगा
फूल न होंगे खुसबु के तो 
क्या टहनी से बहलाएगा
और जब टहनी से मार पड़ेगी 
तो कैसे प्यास बुझायेगा
देख नजारा अपने जीवन का
थोड़ा सा धिक्कार स्वयं को
अपनी जनसंख्या थोड़ी कम कर तू
स्वच्छता अभियान चला अमल कर तू
वृक्ष लगा और पानी दे 
ओ मुझे बचा लोगो को जीवन दे
फिर मैं भी थोड़ा थोड़ा ऊपर आ जाऊंगा
पानी पानी का कोलाहल शान्त करो
मैं पानी बोल रहा हूं ।।"

कवयित्री– रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश।

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