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सेवा निवृत्ति ( रिटायरमेंट ) का पहला दिन.. The first day of retirement

*कैसा रहा पहला दिन सेवा निवृति का*

पहला दिन सेवा निवृति का कैसा रहा ? कहते है की जब इन्सान अपने कार्य से बिमुख हो जाता है तो उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ता है। क्योकि हम लोग करीब २५-२८ सालो तक काम या नौकरी जो करते है, तो जीवन की रफ़्तार लगभग एक सामन होती है और पूरी दिनचर्या भी ३६५ दिनों की एक जैसी ही होती है। जब घर में कोई नया मेहमान आता है तो बहुत ही खुशियाँ का माहौल रहता है। दूसरी बार घर में खुशियाँ जब मनाई जाती है जब हमें अच्छी नौकरी मिल जाती है, और हमारे जीवन की शुरुआत हो जाती है। थोड़े से समय के उपरांत ही घर में फिर ख़ुशी का दौर शुरू होता है। घर मे मेरी शादी का होना। याने की अब हमने भी अपने बढ़ो बूढ़ो की तरह गृहस्थ जीवन में प्रवेश कर लिया और अब परिवार वालो की जिम्मेदारियों को उठाने का समय आ गया। इसी दौरान हमारे बड़ो का सेवा निवृत होने का समय भी आ गया। ऐसे समय में हम लोग समझ ही नहीं पाते की, हम क्या करे और क्या न करे, क्योकि पहले तो घर परिवार की तमाम जिम्मेदारियां हमारे बड़े बूढ़े जन ही उठाते थे, और हम सब तो सिर्फ मौज मस्ती और अपनी पढ़ाई आदि तक ही सीमित रहते थे। कहाँ से पैसा आता है कितना परिवार पर प्रत्येक माह खर्च होता है कैसे माँ बाप घर को चलाते है आदि आदि। ऐसी बहुत सारी समस्यां होती है जिनका एहसास हमारे बच्चो को उस समय पता नहीं होता है। कहते है की सिर्फ एक इंसान चार पाँच बच्चो को पाल देता है परन्तु वर्तमान समय में चार पाँच बच्चे मिलकर भी अपने मां बाप को नहीं संभाल पाते है। तो इसे हम क्या समझे ? ये प्रश्न कहने में बहुत सरल है परन्तु निभाने में बहुत ही कठिन होता है।
साथियो जैसे की इससे पहले वाला मेरा लेख था की सेवा निवृत होने का एहसास। कल ही मुझे अपनी जिम्मेदारियों से अवकाश मिला है और घर पर रहने का आज मेरा पहला दिन है। मैं अपनी गतिविधियों को आज उसी तरह शुरू की, सुबह सबसे पहले उठकर दूध लेने को जाना और फिर स्नाह आदि करके भगवान की पूजा आदि करना, उसके बाद पेपर पड़ते हुए चाय और नाश्ता आदि करना, फिर कपड़े आदि पहनकर तैयार होना और आवाज़ दी की सुनती हो मेरा दफ्तर जाने का समय हो गया, जल्दी से खाने का डब्बा दे दो, तभी अन्दर से आवाज़ आई की अब आपको कही नहीं जाना है, क्योकि अब आप सेवा निवृत हो गए हो समझे जी। अब तो हमारे बच्चो के जाने के दिन है। आपके नहीं तभी मुझे याद आ गया की हम तो रिटायर हो गए है। हमने सोचा की अब में अपने आप को सामाजिक और धार्मिक गतिविधियों में लगाऊंगा जिससे हमारा समय भी पास हो जायेगा और समाज की सेवा भी कर सकूंगा। तामाम पेपरों को आज दिन भर पढ़ता रहा, अब उनका कोई भी उपयोग नहीं है। ये सब कुछ सोचे और समझाते शाम और रात हो गई दोनों बेटे आफिस से वापिस आ गए, हमेशा की तरह साथ में खाना खाया तो उसी दौरान वो पूछने लगे की आज का पहला दिन पापा जी आपका कैसा रहा, मैंने कहाँ कोई ख़ास नहीं अब कुछ तो दिनचर्या बनाना पड़ेगी। तो सोच रहा हूँ की में क्या कर सकता हूँ, तभी बहुओ ने कहा आपको अब कोई भी काम काज के बारे में नहीं सोचना है। बस आराम करो हम लोग तो कामा रहे है, न तो चिंता किस बात की, ऐसे विचार अपने बच्चो और बहुओ के मुख से सुनकर मेरा दिल भर गया और मैंने भी कह दिया की मैं काम वाले काम के बारे में नहीं बोल रहा हूँ, कुछ समाज की भलाई के बारे में कुछ करू। ताकि मेरा भी मन लगा रहेगा और समय भी पास हो जायेगा।
कुछ धार्मिक गतिविधयां और समाज के विकास के बारे में काम करू। सेवा भाव से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। तो क्यों न हम इसी मार्ग को अपनाए और अपना तथा समाज का कल्याण करे। ये ही मैंने आज पहले दिन सोचा है। अब देखते है की हम कितने प्रतिशत कामयाब होते है अपने मिशन में साथियो और बाकी हमारे बच्चों पर भी निर्भर करेगा।
संजय जैन (मुम्बई)
जय जिनेन्द्र देव की
15/05/2019

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