तारीफ़ हुश्न की तारीफ में शब्दों का जाल बुनता हूँ। उसको तारीफ़ पसंद है दिनरात तारीफ करता हूँ। उपमाओ की माला बुनता हूँ कभी आरोप-प्रत्यारोप करता हूँ। उसकी खुशी के लिए चाँद मे दाग कहता हूँ उसको बेमिसाल कहता हूँ। कवि मस्ताना
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