विधा – कविता
शीर्षक– ‘प्रकृति’
“हरियाली एक प्रकृति दृश्य हैैं
जिससे हम सिंचित होते हैं।
तन– मन से आह्लादित होते
उनकी शुद्ध हवाओं से ।।
यह धरा हमारा एक घर हैं
और पर्यावरण हमारी छत ।
उनको काटते हो क्यों तुम
जो सबको हैं छाया देते ।।
हरियाली देखें तो रोशनी बढ़ती
चलें हरी दूब पर नंगे पांव तो ।
चिन्ता की बीमारी कम हैं होती
और छाया,लकड़ी, फल तो इनका
मानो हम सब कुछ भुलाए बैठें हैं ।।
मानव,पशु और जीव– जन्तु को
सबको वह तृप्ती देते हैं ।
मानव और प्रकृति के बीच
वह सन्तुलन बनाते हैं ।।
कितने निर्धन के घर में वह
वह जल कर भोजन पकाते हैं ।
इतने उपयोगी वृक्षों को
हे! मानव क्यों तुम नित काट रहे हो।।
इनके कट जाने से मानव
तुम अंधे हो जाओगे ।
धीरे –धीरे तेरा जीवन
अन्धकार में डूब रहा हैं अब ।।
प्रकृति बचाओ अब तुम मानव
वृक्ष लगाओ अब तुम मानव।
यह पर्यावरण तुम्हारा हैं
और अब बनों तुम इसके संरक्षक ।।"
लेखिका –रेशमा त्रिपाठी
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश।
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