हम क्या करे रहे अपनी हिंदी भाषा के लिए
हिंदी साहित्य की क्यो लोग आज धज्जियां उड़ा रहे है । बहुत दुख हो रहा है हमे इस तरह के लेख लिखने में पर क्या करूँ में हिंदी भाषा उथान चाहता हूँ इस कारण से कड़वा सत्य आज मुझे कहना ही पड़ेगा। कितने लोगों ने साहित्य मंच बना लिए और उन में ही आपास में होड़ सी लग गई है । और सभी अपने समूह को श्रेष्ठ बता रहे है। और तो और रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसे ले रहे है जो कि गलत है। क्या हमारा हिंदी साहित्य इतना सस्ता है जो उसे पैसे में तोल रहे है। कोई अपने सम्मान पत्रों की संख्या हर दिन बता रहा है। क्या ये सब ठीक है ? हिंदी भाषा को हम सभी राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने हेतु प्रयास कर रहे है । परन्तु अपनी स्वार्थ के लिए क्या कर रहे है जरा अपनी आत्मा पर हाथ रखकर सोचो कि जो हम लोग कर रहे है वो क्या उचित है?इसी दोस्तो आप सही में हिंदी भाषा और हमारे साहित्य को शिखर पर पहुंचना चाहते है तो क्या इस तरह से लेकर जाएंगे । में मानता हूं कि आपकी लेखनी पर आप को सम्मान मिलना चाहिए पर मजाक बनाकर नही। जो आज कल चल रहा है। हम सभी लेखकों और कवियों का गीतकारों का परम कर्तव्य बनता है कि इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाए और अपने साहित्य और हिंदी भाषा के उथान के लिए कार्य करे न कि सिर्फ सम्मान पत्र पाने की होड़ करे ।
में अपनी मातृ भाषा को विश्व स्तर पर सम्मान पाते हुए देखना चाहता हूँ। यदि आप भी हमारे कथन से सहमत हो तो आगे बड़े और हिंदी भाषा के उथान के लिए मेहनत और अपनी लगन का परिचय आदि दे। ताकि हम सही ठंग से अपनी राष्ट्रीय भाषा का सम्म्मन पूरी दुनियाँ में मनवा सके।
संजय जैन (मुम्बई)
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