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क्यों आ रहे हो


क्यों आ रहे हो

मुझे क्यों आजमाने आ रहे हो,
बताओं क्या जताने आ रहे हो,

तुम्हीं ने मुझको ठुकराया था एक दिन,
तो फिर क्यों अब मुझे वापिस मनाने आ रहे हो,

क्यों पिंजरें में रखा था तुमने अब तक कैद करके,
क्यों पिंजरें से मुझे अब तुम छुड़ानें आ रहे हो,

गिराया था मुझे तुमने कभी नीचा दिखाकर,
तो फिर क्यों आज तुम ऊँचा उठाने आ रहे हो,

तुम्हीं ने था रुलाया मुझको पहले जख़्म देकर,
तो अब क्यों जख़्म में मरहम लगाने आ रहे हो,

तुम्हीं ने तो कहा था तुम न कोई काम के हो,
तो फिर क्यों आज मेरी उपलब्धियाँ गिनानें आ रहे हो,

मैं मतलब से नहीं मिलता न मतलब से मेरा रिश्ता,
तुम्हीं थे मतलबी जो हाथ मुझसे फिर मिलाने आ रहे हो,

-©शिवांकित तिवारी "शिवा"
      युवा कवि एवं लेखक
      सतना (म.प्र.)

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