"बचपन"
मुझे मेरे बचपन की याद बहुत आती हैघर में बच्चों को खेलता देख
पुरानी यादों उभर जाती है....
सोने बिस्तर में आते ही
मां की गोद नजर आती है....
गिल्ली डंडा खेलने दौड़ लगाने जाती थी
भाइयों के संग पतंग उड़ाने
छत पर भी चढ़ जाती थी....
मम्मी की डांट अनसुना कर
बारिश में भीग जाती थी
कागज की कश्ती बनाकर
पानी में चलाती थी.....
छोटी-छोटी बातों पर
भाई बहनों की लड़ाई हो जाती थी
रूठ जाऊं अगर तो
घंटों मनाई जाती थी....
दुनिया के झूठ फरेब से
नहीं कोई मतलब था
हमको तो दिन भर बस
नादानियां ही भाती थी..….
खेलना कूदना घुमना फिरना
यही काम सोच पाती थी
छोटी सी उम्र में भी
बड़े सपने सजाती थी.....
कैसे भूल जाऊं बचपन को
खाने में सोंधी मिट्टी ही भाती थी
छुट्टी के दिन में तो
सबसे ज्यादा आलसी हो जाती थी....
आधुनिकता के साथ अब तो
बचपन भी बदल गया
मोबाइल टीवी के साथ सोते बच्चे
हमको तो लोरी से ही नींद आती थी.....
दीपमाला पांडेय
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