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लोकगीत गोरिया

गोरिया


गोरिया   पतरकी  रहिया  अगोरे।
गिन - गिन बितेला समवा औ भोरे।।

जबसे  कमाये गइला पिया कलकतवां
हिया मोरा खुरके जइसे पीपर कै पतवा
बढ़ल बाय   दुखवा तूं   समझेला    थोरे ।।गोरिया - - - -

आइल  त्योहार  प्यारा    रक्षाबंधनवां
गुड़िया मचवलिन घरवां मे  ठनगनवां
सुबहियें से रोवत बाटिन बहुतै जोरे-जोरे।। गोरिया - - -

फुच्चे रिषियाई गइलैं  झंडा वनके  चाही
मधुवा के नरखा नाहीं सचिनवां के स्याही
केहू  नाहीं आगे - पीछे  सईंयां   जी  मोरे।। गोरिया - - -


       ।। कविरंग ।।
            पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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