ग़ज़ल
बज़्म में तक़सीर की हद हो गई
पांडवों के धीर की हद हो गई
ज़िन्दगी का मुद्दआ सुलझा नहीं
बेसबब तक़रीर की हद हो गई
राह तकते आँखें पथराई मेरी
आप की ताख़ीर की हद हो गई
कल तलक़ तो म्यान में चुपचाप थी
आज तो शमशीर की हद हो गई
शायरी से तँग शायर कह उठे
यार ग़ालिब मीर की हद हो गई
बलजीत सिंह बेनाम
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