कलम लाइव पत्रिका

ईमेल:- kalamlivepatrika@gmail.com

Sponsor

Ghazal ग़लज


ग़ज़ल

बज़्म में तक़सीर की हद हो गई
पांडवों के धीर की हद हो गई

ज़िन्दगी का मुद्दआ सुलझा नहीं
बेसबब तक़रीर की हद हो गई

राह तकते आँखें पथराई मेरी
आप की ताख़ीर की हद हो गई

कल तलक़ तो म्यान में चुपचाप थी
आज तो शमशीर की हद हो गई

शायरी से तँग शायर कह उठे
यार ग़ालिब मीर की हद हो गई

             बलजीत सिंह बेनाम

No comments:

Post a Comment