मित्रता
।।1।।मारग मित्रता को आसान नहीं
छूरे के धार पर चलनो सरल है।
कपटी पग न रखैं यह पथ पर
यहि राह की चाह तिन्हको गरल है।।
शंक न रहै निशि - वासर मन में
देने को दिल का भण्डार भरल है।
कहैं कविरंग नहाने को गंग
रहै मन चंग तबै मित्रता सबल है।।
।। 2।।
जन्म - मरन दुख-सुख साथ गहैं
कंधे पे हाथ निछावर वारे।
अवगुण मित्र को छिपाये रहैं
गुण सम्मुख सबै के सदा उद्गारे।।
सत्य को मारग आसान करैं
कुमारग से पाँव हमेशा निकारें।
षडारि से दूर बचाये हुए
विपत्ति मे नाम बोलाय पुकारें।।
।। 3।।
आज के मित्र हैं सांप सरीखे
मन मा कुटिलता लिए जग धांवैं।
मित्र को उन्नति सुनि जूड़ी धरै
अवनति मे मित्र के महा सुख पावैं।।
निशि - वासर डूबत निंदा रस मा
पीठ के पीछे वह बान चलावैं।
दिल मा लिए घूमत राज बहुत
ऊपर से ही गले के प्रेम जतावैं।।
।। 4।।
कोठरि दिल की जब साफ नहीं
हठ कइके काहें करत हौ मिताई।
करैली को गंग मा डुबायें रहौ
लाख उपाय से न जाई तिताई।।
नीम को बोरे रहौ घृत मा
बारह मास मे न आई मिठाई।
यहां स्वारथ लागि मिताई करैं
परमारथ क्षीर मे पड़ी है खटाई।।
स्वरचित मौलिक । ।कविरंग ।।
पर्रोई - सिद्धार्थ नगर( उ0प्र0)

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